रानी पद्मावती रजपूतों की प्रसिद्ध रानी है। उसे आज भी शौर्य और पवित्रता के लिए याद कीया जाता हैं। उसे पद्मिनी भी कहा जाता है। मलिक मुहम्मद जयसी द्वारा लिखित पुस्तक पद्मावत में उसके बारे में स्पष्ट उल्लेख है। अब उसकी जीवन की कहानी बॉलीवुड में एक फिल्म के रूप में रिलीज हुई है।
रजपूतों की रानी बनने से पहले, पद्मावती सिंहल की राजकुमारी थी। वह एक अपूर्व सुंदरी थी। उसकी सुंदरता के बारे में चार दिशाओं में विभिन्न प्रकार के वर्णन चल रहे थे। युवरानी पद्मिनी के पास हीरामणि नाम का एक बोलने वाला तोता था। जब समय आया, तो सिम्हल के राजा ने पद्मिनी को शादी करने का फैसला किया और उसके लिए एक योग्य वर चुनने के लिए स्वयंवर की व्यवस्था की।
रानी पद्मावती की बात करने वाला तोता हीरामणि से, चित्तौड़ के राजा रतनसिंह को राजकुमारी पद्मिनी की सुंदरता और स्वयंवर के बारे में पता चला। राजा रतनसिंह ने पद्मिनी की सुंदरता के वर्णन सुनने के बाद खुद को खो दिया और सिंहल को चला गया। उसने स्वयंवर में भाग लिया, उसने बहुत संघर्ष किया और उसमें राजकुमारी पद्मिनी को जीता। स्वयंवर में उसे जीतने के बाद उसने उससे शादी की।
राजा रतनसिंह से विवाह करने के बाद पद्मिनी रानी पद्मावती के रूप में चित्तौड़ पहुंची। वहां सभी लोग उसकी सुंदरता से आश्चर्य चकित हो गए। राजा रतनसिंह ने रानी पद्मावती की सेवा के लिए कार्यकर्ताओं की एक विशेष टीम नियुक्त की। वह बिना किसी कमी के उसकी देखभाल करने लगा।
रानी पद्मावती और राजा रतन सिंह का वैवाहिक जीवन सुखमय था। एक दिन राजा रतनसिंह, राघव चैतन्य नाम का एक राज पुरोहित को राजद्रोह के आरोप में देशान्तरण किया। फिर राघव चैतन्य ने राजा रत्नसिंह पर बदला लेने के लिए दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी से हाथ मिलाया। अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती की सुंदरता का कई तरह से वर्णन करके उसके मन में हवस को जगाया। महारानी पद्मावती पर मोहित होकर अलाउद्दीन खिलजी उसे देखने के लिए चित्तौड़ को आ गया।
अलाउद्दीन खिलजी से मिलने के लिए पहले राजा रत्नसिंह और रानी पद्मावती तैयार नहीं थे। लेकिन यह तुच्छ कारण के लिए युद्ध न होना चाहिए, इसलिए रानी पद्मावती उसे आईने में अपना चेहरा दिखाने के लिए सहमत हो गई। आईने में रानी पद्मावती की खूबसूरत चेहरे को देखकर अलाउद्दीन खिलजी पूरी तरह से पागल हो जाता है। अलाउद्दीन खिलजी ने उसे पाने के लिए धोखे से राजा रतन सींह को बंदी बना लेता है।
अलाउद्दीन खिलजी ने राजा रतन सिंह की रिहाई करने की लालच दिखाकर रानी पद्मावती को एक रात उसके साथ सो ने का आग्रह करता है। लेकिन रानी पद्मावती ने उसके नीच सपने पर ठंडा पानी छिड़का दि।अपने बुद्धि का उपयोग करते हुए खिलजी के बंदियों से राजा रतन सिंह को रिहा कर दी। इससे गुस्सा होकर अलाउद्दीन खिलजी ने सीधे चित्तौड़ पर युद्ध की घोषणा कर दीया।
कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। अलाउद्दीन खिलजी की शक्तिशाली सेना के सामने रतन सिंह के सैनिक लंबे समय तक नहीं लड़ पाए। राजपूत सेना की पराजित होने की सभी संभावनाएँ नजदीक आ गए। रानी पद्मावती की सुंदरता के लिए तरसने वाला और एक दुश्मन राजा देवपाल से राजा रतन सिंह की हत्या हुई। अलाउद्दीन खिलजी अपने कुटीर प्रयास में सफल हो गया।
रानी पद्मावती राजा रतन सिंह की मृत्यु की खबर सुनकर चिंतित हो गई। रानी पद्मावती नीच खिलजी को अपने मन बदन नहीं सौंपना चाहती थी। रानी पद्मावती इस नतीजे पर पहुंचीं कि उसके हाथों में फंसकर तड़प ते तड़प ते जीने के बजाय खुशी से मरना ही बेहतर है। इसलिए वो जौहर करने की फैसला ली। जौहर की प्रथा के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी के आगमन से पहले ही रानी पद्मावती ने एक विशाल अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिया। युद्ध में अपनी पतियों की जान गवाने वाली हजारों राजपूत महिलाओं ने रानी पद्मावती के साथ अपना प्राण त्याग दिए।
रानी पद्मावती की मृत्यु के बाद अंदर आने से अलाउद्दीन खिलजी को बहुत निराशा हुई। अलादीन खिलजी युद्ध में जितने के बावजूद भी रानी पद्मावती को पाने में बुरी तरह से हार गया। “चाहे जान क्यों न चले जाए लेकिन इज्जत सुरक्षित रहना चाहिए” हमें यह सिख रानी पद्मावती से मिलती है। यह रानी पद्मावती की कहानी है। अगर आपको अच्छी लगी हो तो इसे लाइक करें और शेयर करें।
Story Source : Old History Books, Research Journals and Wikipedia
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