जो लोग अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करके सफलता के रास्ते पर चल रहे है वो चाणक्य का नाम को अच्छी तरह से जानते है। चाणक्य का असली नाम विष्णुगुप्त है। उन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। चाणक्य एक महान शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, वकील, प्रधानमंत्री और राजनयिक थे। उनकी किताब “अर्थशास्त्र” ने भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र की नींव रखी। इसलिए चाणक्य द्वारा लिखी गई अर्थशास्त्र को चाणक्य नीति कहा जाता है। और चाणक्य को भारत के मेकवल्ली कहा जाता है।
मौर्य साम्राज्य के उदय से पहले, उत्तर भारत नंदों के अधीन में था। एक सक्षम राजशाही के अभाव के कारण, लुटेरे नंद लोगों का शोषण करते थे। ऐसे लुटेरे नंदों को निकालकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना करने में चाणक्य का बहुत बड़ा हाथ है। चाणक्य ने चंद्रगुप्त और बिंदूसार दोनों के लिए प्रधानमंत्री और राजनयिक सलाहकार के रूप में काम किया।
चाणक्य का जन्म 371 ईसा पूर्व में तक्षशिला के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता चनक (चानना) हैं और उनकी मां चनेश्वरी हैं। बचपन में ही चाणक्य ने वेदों का अध्ययन किया और राजनीति के बारे में सीखा। उसके मुंह में एक ज्ञान का दांत था। ऐसी धारणा थी कि ज्ञान का दांत होना राजा बनने का संकेत है। उसकी माँ ने एक बार एक ज्योतिषी को सुनकर डर गई कि “वह बड़े होकर राजा बन जाएगा और राजा बनने के बाद मुझे भूल जाएगा।”. तब चाणक्य ने अपने ज्ञान का दांत तोड़ दिया और अपनी मां को वचन दिया कि “माँ, तू चिंता मत कर। मैं अच्छी तरह से तेरा खयाल रखूँगा।”
चाणक्य की शिक्षा तक्षशिला में हुई। वह देखने में सुंदर नहीं था। उसके टूटे दाँत, काले रंग और टेढ़े पैर को देखकर सब लोग उसका मजाक उड़ाते थे। इसलिए उसके आँखों में हमेशा क्रोध की ज्वाला जलती थी।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, चाणक्य ने तक्षशिला, नालंदा सहित आसपास के क्षेत्रों में एक शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया। चाणक्य का दृढ़ विश्वास था कि “शरीर से सुंदर होनेवाली महिला केवल एक रात के लिए खुश रख सकती है। लेकिन मन से सुंदरी होनेवाली महिला आपको जिंदगी भर खुश रखती है।”. इसलिए उन्होंने अपने ब्राह्मण वंश में ही यशोधरा नाम की लड़की से विवाह किया। वो भी उसके तरह सुंदर नहीं थी। उसकी काली रंग कुछ लोगों को मजाक का कारण बन गया था। एक बार जब उनकी पत्नी अपने भाई के घर एक समारोह में गई, तो सभी ने चाणक्य की गरीबी का मज़ाक उड़ाया। इससे दुखी होकर उनकी पत्नी ने उन्हें राजा धनानंद से मिलने और उपहार के रूप में कुछ धन प्राप्त करने की सलाह दी।
मगध के सम्राट धनानंद ने ब्राह्मणों के लिए पुष्पपुर में एक भोजनकूट का आयोजन किया था। वहां राजा धनानंद को अखंड भारत की सुझाव देकर उपहार प्राप्त करने की इच्छा में चाणक्य भी उसमें शामिल थे। लेकिन धनानंद ने चाणक्य के कुरूप रूप को देखकर उनका अपमान किया और उनकी बातों का तिरस्कार किया। तब चाणक्य ने क्रोधित होकर नंदा साम्राज्य को नष्ट कर देने की प्रतिज्ञा किए। तब धनानंद ने उन्हे गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन चाणक्य भेस में वहां से भाग निकले।
धनानंद के दरबार से भागने के बाद, चाणक्य ने अपना सिर छिपा लिया और मगध के चारों ओर घूमना शुरू कर दिया। इस दौरान वो अपने प्रतिद्वंद्वी धनानंद के बेटे, पब्बता के साथ दोस्त बन गए। चाणक्य ने पब्बता के मन जीतकर एक शाही अंगूठी प्राप्त की और जंगल में चले गए। उस शाही अंगूठी से चाणक्य ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके 80 करोड़ सुनहरे सिक्के की कमाई की। उतने सारे सुनहरे सिक्के को जंगल में एक बिल खोदकर सुरक्षित रूप से रखने के बाद, वो एक ऐसे नायक की तलाश करने चले गए, जो धनानंद को समतल कर सके। चाणक्य एक ऐसी साहसी के तलाश में थे जो धनानंद के नंद वंश को जड़ से नाश कर सके। उसी समय चाणक्य के नज़र में चंद्रगुप्त पड़ा। चाणक्य ने उसके पालक माता-पिता को 1000 सोने के सिक्के दिए और उसे अपने साथ जंगल ले गए। वर्तमान में धनानंद के सिर को हटाने के लिए चाणक्य के पास दो हथियार थे। यदि चंद्रगुप्त उनमें से एक था, तो एक और पब्बता था। चाणक्य ने इन दोनों में से एक को प्रशिक्षित करने और उसे सम्राट बनाने का फैसला किया। उन्होंने उनके बीच एक छोटी सी परीक्षा रखी। इस परीक्षा में चंद्रगुप्त ने पब्बता का सिर हटाकर विजयशाली बन गया।
अपने द्वारा रखी गई परीक्षा में विजेता होनेवाला चंद्रगुप्त पर चाणक्य को गर्व था। चाणक्य ने उसे 7 साल का कठोर सैन्य प्रशिक्षण दिया। चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त एक सक्षम योद्धा बन गया। धनानंद के नंद साम्राज्य को उखाड़ फेंकने और मौर्य समाज की स्थापना करने में चाणक्य इच्छुक थे। इसलिए चंद्रगुप्त ने बिना ज्यादा सोचे एक छोटी सेना बनाकर नंदों की राजधानी मगध पर हमला किया। लेकिन चंद्रगुप्त की छोटी सेना को नंदों के बड़े सेना ने कुचल दिया। जल्दबाजी में निर्णय लेने के लिए, शुरू में ही चाणक्य का हाथ जल गया। चाणक्य और चंद्रगुप्त हताशा में सिर छुपाके घूमने लगे।
एक दिन चाणक्य और चंद्रगुप्त भेस में मगध में घूम रहे थे। तब उनको एक माँ से प्रबोधन हुआ जो अपने बेटे को डांट रही थी। उस माँ, गर्म रोटी के बीच में हाथ डालकर हाथ जला लेनेवाला अपने बेटे को डांट रही थी। “सीधे गर्म रोटी के बीच हाथ डालेगा तो जलेगा ही ना? तू भी उस बेवकूफ चाणक्य की तरह क्यों कर रहा है, जो पहले सिमा प्रदेशों पर कब्ज़ा करने के बजाय सीधा राजधानी पर हमला करके हाथ जला लिया है। पहले रोटी के तट को खाना, फिर बाद में बिच में हाथ डालना, तब नहीं जलेगा”। उस माँ अपने बच्चे को इस तरह डांट रही थी। इसे चाणक्य और चंद्रगुप्त चुपके से सुन लेते है। उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि पहले सीमा पर कब्ज़ा किये बिना राजधानी पाटलिपुत्र पर हमला करना एक बड़ी गलती थी। चाणक्य ने अपने को प्रबोधन करनेवाली उस माँ को प्रणाम करके आगे चले।
चाणक्य की सलाह पर चंद्रगुप्त ने सरहदों पर आक्रमण करके उनको अपने वश में लेना शुरू कर दिया।। जंगल में बेकाम घूमनेवाले लोगों को चंद्रगुप्त ने प्रशिक्षित करके उन्हें अपने सेना में शामिल कर लिया। जब सेना हर तरह से सक्षम हो गई, तो चाणक्य ने जंगल में अपने द्वारा छिपी हुई सोने के सिक्कों को बाहर निकाला और सेना के लिए सभी आवश्यक सामान उपलब्ध कराया। ऐसे करके चाणक्य ने सेना को और मजबूत बनाया। सीमा पर कुछ छोटे राजााओं ने चंद्रगुप्त की सेना में शामिल होने के लिए असहमत थे। ऐसे राजााओं को चाणक्य ने विष कन्याओं से मार दिया। वो कुछ लड़कियों को बचपन से ही खाने में थोड़ा थोड़ा जहर मिलाके उनको विष कन्याओं के रूप में परिवर्तित किया थे। सामनेवाली पराक्रमी राजा को मारने के लिए विष कन्याओं की एक चुंबन पर्याप्त थी। इसके अलावा, चाणक्य ने कई ऐसे चालाक कदम उठाए और चंद्रगुप्त के नेतृत्व में सभी सीमा स्थानों पर नियंत्रण प्राप्त किया।
क्रोध में शत्रु के बारे में सोचने से कोई फायदा नहीं होगा। चाणक्य ने शांति से सोचकर दुश्मन पर काबू पाने के लिए एक सामरिक रणनीति तैयार कीया। चाणक्य के कहने पर सही समय देखकर, चंद्रगुप्त ने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर हमला किया और धनानंद की हत्या कर दी। उसकी मृत्यु के बाद, नंदा राजवंश को उखाड़ के फेंककर चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। इस तरह चाणक्य का अखंड भारत साम्राज्य स्थापित करने का सपना साकार हुआ। साथ में धनानंद पर उसका बदला भी पूरा हुआ।
अखंड भारत को चंद्रगुप्त सम्राट बनने पर चाणक्य उसके प्रधान मंत्री बने। चाणक्य ने अच्छे सुशासन के लिए एक सक्षम कैबिनेट बनाया। उन्होंने सभी मंत्रियों को अलग-अलग मंत्रालय दिए। उन्होंने नागरिकों के कल्याण के लिए सभी संभव सुविधाएँ प्रदान कीं। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को पुरुष अंगरक्षकों के साथ महिला अंगरक्षकों को भी नियुक्त किया। चंद्रगुप्त मौर्य इतिहास में महिला अंगरक्षक रखने वाले पहले राजा थे। चंद्रगुप्त के जान पर चिंताओं के कारण, चाणक्य उसे बचपन से ही जहर खिलाते थे। उसके खाने में अभी भी कुछ मात्रा में जहर मिलाते थे। एक दिन चंद्रगुप्त की पत्नी दुर्धरा ने उसका खाना खा लिया। विषधर भोजन खाने से दुर्धरा मृत्यु के जबड़े में समा गई। वह उस समय गर्भवती थी। अपने पत्नी और बच्चे को खोने की डर में बैठा हुआ चंद्रगुप्त को देखकर चाणक्य ने दुर्धरा के गर्भ को काट दिया और बच्चे को उसके पेट से बाहर निकाल दिया। बच्चे के शरीर पर कई खून के धब्बे लगे थे। इसी कारण उस बच्चे का नाम बिन्दुसार रखा गया।
चंद्रगुप्त के बाद, बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य का नया सम्राट बना। उसके लिए भी चाणक्य प्रधान मंत्री बने। लेकिन मध्यम उम्र के सुबन्धु को वृद्ध चाणक्य से ईर्ष्या थी। सुबन्धु बिन्दुसार के दरबार का एक साधारण मंत्री था। उसे प्रधानमंत्री बनने की इच्छा थी। इसलिए वह चाणक्य पर तलवार तेज करता था। एक दिन सुबन्धु ने बिन्दुसार को उसकी जन्म कथा सुनाई। बिन्दुसार चाणक्य पर क्रोधित हो गया जब उसे पता चला कि अपनी माँ की मृत्यु का कारण चाणक्य है। राजा के गुस्से के कारण, चाणक्य ने सब कुछ त्याग किए और पाटलिपुत्र के पास जंगल में शामिल हो गए।
कुछ दिनों बाद, बिन्दुसार ने पश्चाताप किया कि उसे आचार्य चाणक्य पर गुस्सा नहीं करना चाहिए था। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। चाणक्य जंगल में एक छोटी सी झोपड़ी में एक साधु के तरह रह रहे थे। तब बिन्दुसार ने सुबन्धु को वन जाने और चाणक्य को मनाके वापस लाने का आदेश दिया। लेकिन चाणक्य का आगमन सुबन्धु को पसंद नहीं था। इसलिए उसने चाणक्य की झोपड़ी को जंगल में पाया और उसमें उसे जिंदा जला दिया। इस तरह सुबन्धु के साजिश से चाणक्य की हत्या हुई।
सुबन्धु ने जानबूझकर चाणक्य की हत्या कर दी और अदालत में लौट आकर बिन्दुसार को झूठी रिपोर्ट दीया कि “अपमान के कारण चाणक्य ने आत्महत्या कर ली”। धनानंद से नफरत के कारण, चाणक्य ने चंद्रगुप्त को एक सड़क के भिखारी से सम्राट बनाया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। लेकिन अब उस राज्य के लोगों से ही उनकी हत्या हुई। “जो बदला लेने जाता है, वह निश्चित रूप से एक दिन बुरी तरह से कब्रिस्तान में शामिल हो जाता है” यह बात चाणक्य के मामले में भी सच हो गई। आज भी, चाणक्य के विचारों, नीतियों और कूट-प्रबंधों ने लाखों लोगों को सफलता दिलाई है। वर्तमान में, केवल राजनेताओं और व्यापारियों ने इन चाणक्य सूत्रों का उपयोग करके उनको जो चाहिए उसे हासिल कर रहे है। यह चाणक्य की जीवन गाथा है। इस कहानी को लाइक और शेयर करें। धन्यवाद…
चाणक्य नीतियाँ – Chanakya Niti in Hindi – संपूर्ण चाणक्य निति
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