हर कोई सिकंदर महान के बारे में जानता है, जिसने दुनिया को जीतने के लिए गया था। सिकंदर अपनी 13 साल की उम्र में एक क्रोधित घोड़े को नियंत्रित कर के अपने पिता से शब्बाशागिरि लिया था। तब उसके पिता ने उसे कहा कि “यह मैसेडोनियन साम्राज्य आपकी वीरता के लिए पर्याप्त नहीं है…” उसी क्षण में उसके मन में दुनिया को जितने की आशा जाग उठी। उसे लगा कि “जैसे स्वर्ग में दो सूरज नहीं हो सकते, वैसे ही इस धरती पर दो-दो सम्राट नहीं हो सकते। इस धरती पर एक ही सम्राट होना चाहिए। वह सम्राट मैं ख़ुद हूँ। उसका सपना तब बढ़ गया जब सिकंदर अरिस्टॉटल का शिष्य बन गया।
सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के बाद 19 साल की उम्र में ही मैसेडोनिया का राजा बन गया। 22 साल की उम्र में, उन्होंने पहली लड़ाई की और इसमें जीती। ऐसे ही वह लड़ाइयों पर लड़ाई करते हुए उत्तर भारत में आ गया। उसके पास कोई आधुनिक नक्शे नहीं थे। इसलिए उसको दुनिया की विशालता के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं थी। यह वास्तविक दुनिया उसकी कल्पना से अधिक व्यापक थी। उसकी मान्यता थी कि महासागर ही दुनिया का अंत है।
दुनिया का अधिकांश हिस्सा जीतने के बाद भारत को आनेवाला सिकंदर थोड़ा घमंडी बन गया था। उसको लगा था कि भारत एक छोटा द्वीप है। एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लेकिन साधु सिकंदर से नहीं डरा और सलाम भी नहीं मारा। उस समय, सिकंदर क्रोधित होकर साधु के साथ भाषण युद्ध शुरू किया।
सिकंदर : क्या आप मुझे नहीं जानते?
साधु : नहीं, मुझे नहीं पता है कि तुम कौन हो।
सिकंदर : मैं सिकंदर हूँ…
साधु : सिकंदर मतलब…?
सिकंदर : मैं हु सिकंदर महान यानी अलेक्जेंडर द ग्रेट…
साधु : आप किस में महान है?
सिकंदर : मैंने पूरी दुनिया को जीतके महान बना हूँ। क्या तुम सच में मुझे नहीं जानते हो? तुम क्या चाहते हो?
साधु : समझो कि आप एक रेगिस्तान में हैं। तुम अब प्यासे हो। आसपास कहीं भी पानी नहीं है। यदि आप तुरंत पानी नहीं पीते हैं, तो आपका जान उड़ जाएगा। तब मैं आपको आधा ग्लॉस पानी के लिए आधा साम्राज्य मांग लिया तो आप देंगे क्या ?
सिकंदर : हाँ! निश्चित रूप से दूंगा। क्योंकि मैं जिंदा रहना चाहता हूँ।
साधु : अगर मैं एक ग्लॉस पानी के लिए आपका पूरा राज्य मांग लिया तो क्या आप इसे देंगे?
सिकंदर : हाँ! ज़रूर दूंगा। मुझे मेरा जान महत्वपूर्ण है।
साधु : सिकंदर तुम बस एक ग्लॉस पानी के लिए दौड़ रहे हो। और दूसरों को भी दौड़ा रहे हो।
(साधु मुस्कुराते हुए वहां से चला गया। उसके शब्दों ने सिकंदर को सोचने को मजबूर किए)
उत्तर भारत तक आनेवाला सिकंदर दक्षिण के महासागर तक पहुंचकर अपनी विश्व विजय यात्रा को समाप्त करने के लिए उत्सुक था। लेकिन उसके सैनिकों में इतना जूनून नहीं रहा था। क्योंकि उसके सैनिक लगातार 10 वर्षों से युद्ध में थे। उनको शारीरिक दर्द के साथ कुछ रोग भी लगे थे। और वो भारत के उष्णकटिबंधीय वातावरण को नहीं जानते थे। भारत की अप्रत्याशित बारिश उनके के लिए सिरदर्दी थी। इसलिए वो व्यास नदी पार करने से इनकार कर दिए। भारत पहुंचने पर, सिकंदर को “भारत एक छोटा देश नहीं है, भारत मेरी कल्पना से अधिक व्यापक है” इस सच का एहसास हुआ। इसके अलावा उसको गंगा नदी के किनारे पर रहनेवाला शक्तिशाली नंदा साम्राज्य की कल्पना थी। उसी समय, पोरस के विश्वासघात ने उसका आत्मविश्वास कम कर दिया। इसलिए सिकंदर ने युद्ध बंद कर दिया और ग्रीस लौट गया।
ग्रीस को लौटने के बाद, सिकंदर भीमार पड़ा। वह अपनी माँ को देखना चाहता था। लेकिन वह जानता था कि उसकी मौत करीब आ रही है। वह आश्वस्त था कि कोई मुझे मौत के घाट से नहीं बचा सकता। इसके लिए उन्होंने अपने आर्मी जनरल को बुलाया और उसके सामने 3 मांगें रखीं।
सिकंदर : सबसे पहले, जिस डॉक्टर ने मेरा इलाज किया है, उसे मेरे शव को कब्रिस्तान तक ले जाना चाहिए। दूसरी बात, अभी तक मैंने लड़ाई करके लाए हुए सारे हिरा और रत्नों को मेरे शव पर फ़ेंकना चाहिए। अंत में, मेरे दोनों हाथों को आकाश के तरफ़ मुड़ते हुए दफन करना चाहिए।
आर्मी जनरल : आपके इन तीन मांगों को पूरा किया जाएगा। लेकिन क्या हम इन अजीब मांगों का कारण जान सकते हैं?
सिकंदर : हालांकि दुनिया के सबसे अच्छे डॉक्टर ने मेरा इलाज किया, लेकिन मुझे मौत के जबड़े से कोई नहीं बचा सका। डॉक्टरों को लेकर कोई भी हमें मौत के जबड़े से नहीं बचा सकते। डॉक्टर हमारे जीवन को संभाल सकते हैं। लेकिन उन्हें जीवन देने की शक्ति नहीं है। मैं कितने सालों से लड़ाई करके कमाए हुए दौलत मरते वक्त मुझे किसी काम के लिए नहीं आए। सिर्फ़ वही हमारे साथ रहता है जो हम प्यार से कमाए है। इसलिए ऐसे करने से पूरी दुनिया को पता लगे की खाली हाथों से आया हुआ सिकंदर खाली हाथों से जा रहा है।
इस अनमोल जीवन संदेश दे के सिकंदर अपनी आँखे बंद कर लिया। सिकंदर सिर्फ हमें हिम्मत से लड़ने को नहीं सिखाया है, साथ ही हमें प्यार से जीने को भी सिखाया है। हम भी सिकंदर की तरह एक ग्लॉस पानी के लिए दौड़ रहे हैं। शुबह 4 बजे से लेकर रात के 12 बजे तक हम दौड़ते रहते हैं। ज्यादा पैसों की लालच से हम अपने स्वास्थ को बर्बाद करके जिंदा लाश बन रहे है। धन और दौलत की लालच में हम अपने जीवनसाथी को समय नहीं दे रहे है। हम पानी से ज्यादा दवा पी रहे हैं। हम चावल से ज्यादा गोलियां खा रहे है। क्या हमें सच में ऐसे जीवन की आवश्यकता है? जीवन चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं है।
आपको दुनिया जीतने की जरूरत नहीं है। लेकिन आपको अपने जीवनसाथी का मन जीतने की जरूरत है। द्वेष से जीता हुआ सब चीजें देह के साथ मिट्ठी में मिल जाते है। प्रेम से पानेवाली सब चीजें अमर होते है। हो सकता है तो अपने जीवनसाथी से प्यार करें।
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